Aalhadini

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The Train... beings death 2

 जब चिंकी और प्रिया को वहां बैठे-बैठे थोड़ी देर हो गई… तब प्रिया चिंकी को छोड़कर कहीं चली गई।

 चिंकी वहीं बैठी-बैठी प्रिया के बारे में सोच रही थी।  थोड़ी ही देर में उसे अपने मां बाबा की याद आ गई।  छोटी ही तो थी... तो घरवालों की याद आना स्वाभाविक ही है।
 प्रिया थोड़ी देर बाद कुछ खाने का सामान लेकर लौटी... प्रिया ने चिंकी को एक बिस्किट का पैकेट देते हुए कहा, "चिंकी…!! यहां तो बस यही है..  जब हमारी फैमिली इस ट्रेन में चढ़े थे.. तो हमारे पास कुछ बिस्किट के पैकेट्स,  कुछ चिप्स के पैकेट्स, कुछ सूखा नाश्ता और पानी की बॉटल थी। बाकी सामान तो खराब हो चुका है.. पर बिस्किट और पानी अभी भी सेफ है। तो आज का दिन तुम इसके सहारे निकाल सकती हो.. पर जैसे ही कल ट्रेन उसी स्टेशन पर रुकेगी.. तुम जल्दी से उतर जाना।  वरना कभी नहीं उतर पाओगी और हां... तुम कोशिश करना कि तुम यहाँ से बिल्कुल भी नहीं हिलो और किसी की नजर में ना ही आओ... नहीं तो मैं भी तुम्हें नहीं बचा पाऊंगी..!!"
चिंकी ने वह बिस्किट का पैकेट लेते हुए हां में अपना सिर हिला दिया... और कहा, "प्रिया.. मैं ध्यान रखूंगी.. मैं यहां से कहीं भी नहीं जाऊंगी। बस तुम मुझे उसे स्टेशन के बारे में बता देना... ताकि मैं उतर जाऊं।"
 ऐसा कहकर चिंकी बिस्किट खाने लगी... बिस्किट खा ही रही थी कि चिंकी को गले में कुछ अटकता हुआ लगा.. जिसके कारण उसे खांसी आ गई। चिंकी को खांसी आते ही.. प्रिया बहुत ज्यादा डर गई थी उसे  अब चिंकी की चिंता होने लगी थी। प्रिया ने चिंकी की पीठ थपथपाई और उसको सांस लेने में मदद की। खांसी के कारण चिंकी की आंखों में आंसू आ गए थे.. और वह लगभग रोने ही लगी थी।
 प्रिया ने अचानक से चिंकी का हाथ पकड़कर एक तरफ भागना शुरू कर दिया। भागते भागते वह पीछे की तरफ मुड़-मुड़ कर देखती जा रही थी। एक-दो कंपार्टमेंट आगे जाकर.. प्रिया ने चिंकी को एक कोने में बिठा दिया।
 वहां पर किसी ने भगवान की फोटो चिपकाई हुई थी। उसने चिंकी से कहा, "चिंकी.. तुम यही बैठी रहो.. शायद किसी को तुम्हारे ट्रेन में होने के बारे में पता चल गया है। मैं देख कर आती हूं कि कोई भी इस तरफ तो नहीं आ रहा।  तुम यहां से बिल्कुल भी मत हिलना।"
 ऐसा कहते हुए प्रिया तेजी से उस कंपार्टमेंट के बाहर चली गई।  चिंकी वही अपने घुटने पर सर रखकर बैठी थी। थोड़ी देर में उसे वहां बहुत ही ज्यादा ठंड लगने लगी... ऐसा लगने लगा कि अचानक से आसपास कहीं बर्फ गिरने लगी हो.. और ट्रेन में अचानक से एक अजीब सी हलचल और अफरा तफरी मच गई थी।
 ट्रेन वहां कुछ देर के लिए रुकी थी.. ट्रेन के रुकते ही चिंकी को लगा कि उसका स्टेशन आ गया था। इसलिए वह दरवाजे की तरफ चल पड़ी.. दरवाजे पर उसने देखा कि बाहर बहुत ही अजीब माहौल  था।
 चारों तरफ बहुत ही ज्यादा ठंडक फैली हुई थी.. थोड़ी-थोड़ी दूरी पर कुछ लाल रंग की चीजों की जोड़ियां चमक रही थी.. रुक-रुक कर बहुत ही तेज हवा चल रही थी.. जिसके कारण चिंकी को वहां खड़े रहने में बहुत ही ज्यादा दिक्कत हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे एक निश्चित अंतराल के बाद बहुत ही तेज चक्रवात आ रहा हो। वह तो चिंकी ने दरवाजे पर लगे हैंडल को कस कर पकड़ा हुआ था.. नहीं तो उस हवा के झोंके से चिंकी उस गेट से उड़कर पीछे वाले गेट से ट्रेन के बाहर निकल गई होती।
 चिंकी जब ट्रेन से उतरने के बारे में सोच ही रही थी कि.. पीछे से उसे किसी ने पकड़ कर ट्रेन के अंदर खींच लिया।
 ऐसे खींचने के कारण चिंकी ट्रेन में अंदर गिर पड़ी थी... जिसके कारण चिंकी को बहुत तेज चोट लगी थी। चिंकी ने गर्दन उठाकर देखा.. तो एक आधा सिर कटा हुआ आदमी खड़ा था।
 जिसका आधा सर कटा हुआ था... उसकी एक आंख,आधी नाक, आधा मुंह, आधी गर्दन और एक कंधा, एक हाथ ही था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उस आदमी का आधा शरीर उसके धड़ से अलग कर दिया हो। जो हिस्सा उसका आधा कटा हुआ था..  वहां से खून बह रहा था.. अजीब से कीड़े उस कटे हुए भाग में कुलबुला रहे थे। जिससे बहुत ही अजीब सी दुर्गंध फैल रही थी। वह दुर्गंध इतनी बुरी थी कि चिंकी को उसके कारण वही उल्टी हो गई... वह आधा सिर कटी लाश अपनी एक आंख से चिंकी को घूरे जा रही थी।
जब उल्टी करने के बाद चिंकी थोड़ी संभली.. तो उसे ध्यान आया कि प्रीति ने उसे वहां से हिलने के लिए मना किया था। चिंकी वहां से भागकर फिर से उसी जगह जाना चाहती थी.. जहां पर प्रीति उसे बैठा कर गई थी... पर वह सर कटी लाश उसके कारण चिंकी हिल भी नहीं पा रही थी। 
चिंकी ने धीरे-धीरे पीछे की तरफ सरकना शुरू कर दिया.. वो लाश को यह दिखाना नहीं चाहती थी कि वो से वहां से भागना चाहती थी। चिंकी उसे केवल यह दिखाना चाहती थी कि वो उससे डरने के कारण पीछे सरक रही थी।  जब चिंकी थोड़ी दूर पीछे की तरफ सरक गई थी.. तब लाश भी धीरे-धीरे चिंकी की तरफ बढ़ने लगी।  चिंकी ने भी अपने पीछे हटने की गति थोड़ी तेज कर दी थी। एकदम से चिंकी खड़ी होकर उसी कंपार्टमेंट की तरह तरफ दौड़ पड़ी। 
 उस सर कटी लाश के चेहरे पर एक क्रूर मुस्कान फैल गई थी.. वह भी धीरे-धीरे चिंकी की तरफ बढ़ चला था। दो ही मिनट बाद चिंकी वापस उसी जगह पहुंच गई.. जहां प्रिया उसे छोड़ कर गई थी। उस सर कटी लाश ने जैसे ही उस कंपार्टमेंट में पैर रखना चाहा.. उसके पैर में एक तेज जलन महसूस हुई.. उसने हड़बड़ा कर अपने पैर की तरफ देखा.. तो उसका पैर जल रहा था। उसे समझ नहीं आया कि पूरी ट्रेन  उसके जैसे ही आधे मरे और मरे हुए लोगों की आत्माओं से भरी पड़ी थी.. तो यहां क्या हो गया…??
उस आधे सर कटी लाश ने अपना पैर पीछे खींच लिया और थोड़ी देर रुकने के बाद फिर से अपना पैर वहां रखा.. तो उसका पैर फिर से जलने लगा था। पर इस बार वह एक गलती कर बैठा था.. जल्दबाजी में उसने अपना एक पैर नहीं बल्कि पूरा की पूरा खुद ही अंदर आ गया था। शायद यह उसका लालच था कि उसे चिंकी चाहिए थी।  उसी की वजह से वह पूरा उस सीमा में चला गया था। थोड़ी ही देर में वह पूरी सर कटी लाश.. जो कि एक आत्मा थी.. धूं-धूं करके जल उठी.. और देखते ही देखते पूरी जल गई।
 चिंकी का यह सब देख कर ही घबराहट के कारण हाल बेहाल हो गया था। चिंकी बस केवल इस समय अपनी मां और देवी मां को ही याद कर रही थी। चिंकी ने सोचा भी नहीं था कि कभी उसे ऐसा सब कुछ भी दिखाई देगा। जब वह लाश पूरी तरह जल गई.. तब उसमें से एक दिव्य रोशनी प्रकट हुई... जो चिंकी की तरफ बढ़ गई.. और चिंकी के मस्तिष्क में समा गई।
 उस रोशनी के समाते ही चिंकी बेहोश हो गई.. पता नहीं कितनी देर तक चिंकी ऐसे ही बेहोश पड़ी रही। 
चिंकी को होश तब आया.. जब प्रिया उसके चेहरे पर पानी के छींटे मार रही थी।
 "चिंकी...!! चिंकी…!! उठो चिंकी... क्या हुआ तुम्हें…??" प्रिया ने चिंकी के चेहरे पर पानी के छींटे मारते हुए कहा। 
 चिंकी ने थोड़ा सा अलसाते हुए कहा, "मां... सोने दो ना.. थोड़ी देर आज तो स्कूल भी नहीं जाना।" 
इतना कहते ही प्रिया ने चिंकी को जोर से झकझोर कर उठा दिया। इस तरह से झकझोरे जाने पर चिंकी हड़बड़ा कर उठ बैठी। उसने एकदम से उठ कर अपने चारों तरफ देखा.. तब उसे याद आया कि वह अभी भी उसी ट्रेन में बैठी थी। याद आते ही चिंकी की आंखों से आंसू बह निकले।
 प्रिया ने पानी की बॉटल चिंकी की तरफ बढ़ाते हुए कहा, "क्या हुआ था.. चिंकी तुम ऐसे बेहोश कैसे हो गई थी..??"
 तब चिंकी ने ट्रेन के रुकने और आधा सर कटी लाश के बारे में प्रिया को बताया। प्रिया की भी डर के कारण हालत खराब हो रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसी कौन सी जगह वो ट्रेन रुकी थी.. जिसके बारे में प्रिया भी नहीं जानती थी।
 प्रिया ने फिर भी चिंकी को सांत्वना देते हुए कहा, "तुम चिंता मत करो.. चिंकी तुम जल्दी ही अपने घर वालों के पास होंगी.. बस किसी तरह बिना किसी की नजर में आए आज का दिन निकल जाए। और जो गलती तुमने अभी की थी.. वह गलती मत दोहराना... क्योंकि यह ट्रेन कहां, कब और क्यों जाती है..? उसके बारे में मुझे भी नहीं पता.. और आज से पहले मैंने कभी पता लगाने की कोशिश भी नहीं की।"
तभी अचानक ट्रेन झटका खाते हुए रुक गई... थोड़ी ही देर में पूरी ट्रेन में एक अजीब सा धुआं भरने लगा... जब धुआं पूरी ट्रेन में फैल गया तब उस धुएँ ने एक आकार लेना शुरू कर दिया...

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6 Comments

Abhinav ji

05-Apr-2022 09:27 AM

Nice

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Punam verma

26-Mar-2022 08:49 AM

Bahut hi darawani kahanai hai. Aage aur bhi bhayavah hogi kahani

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यह भाग भी बहुत इंट्रेस्टिंग था।👌उस आत्मा का ऐसे जल जाना और चिंकी k मस्तिष्क में समा जाना गजब था। देखते है इस ट्रेन में और कौन कौन से नए रोमांच भरे पड़े है।😍 उस आत्मा का चिंकी k दिमाग़ में घुसने से चिंकी पर क्या असर पड़ेगा ये भी बढ़िया सस्पेंस है। 👏👏 पर कहीं पर प्रिया और कहीं पर प्रीती हो गया है वो ठीक कर लीजिये।

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Aalhadini

21-Mar-2022 09:53 PM

धन्यवाद 🙏🏼

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